Thursday, 1 September 2011

74.जब भी कोई गौरी देखूं


गौरा-गौरा रूप तेरा मुझको यूं तड़फाये ,
जब भी कोई गौरी देखूं,
तुझे याद किये बिन रहा ना जाये.


ये नैन-नक्श तेरा कमाल का है,
जो भी देखे देखता रह जाये,
ये जादू तेरे डिम्पल वाले गाल का है.


जब मुस्कराती हो तो डिम्पल खिल जाते हैं,
देखने वाले कुछ कह नहीं पाते,
अंदर तक हिल जाते हैं.


मैं तो चुप रहना ही पसंद करता हूँ,
चाहकर भी कुछ कह नहीं सकता,
दिल से मजबूर जुबान को बंद करता हूँ.


ये गठीला बदन तेरा बड़ा बेचैन करता है,
एक नज़र जिसकी  भी पड़ जाये ,
उसी का तुझे पाने को मन करता है.


किसी से कुछ कहा ना जाये,
बिन कहे रहा भी ना जाये,
तेरी जुदाई का एक पल भी सहा ना जाये.


हर रात सपनों में आती हो ,
जब भी बांहों में भरना चाहता हूँ,
नींद से जगा कर चली जाती हो.


कब तक यूं सताती रहोगी,
संवार दो मेरी जिन्दगी को,
कब तक मुझे जुदाई में रुलाती रहोगी.


ना देखूं एक पल तो दिल को चैन ना आये,
तेरे बिना जीना पड़ेगा ये सोचकर ही,
जिया जाये पर जीया ना .जाये...



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