Thursday, 1 September 2011

70. नफरत का चिराग जला के चली गई


मेरी तरफ बेरुखी से भी नहीं  देखा ,
और उधर मुस्करा के चली गई.


इस तरह से तो तू मेरे दिल में,
नफरत का चिराग जला के चली गई.


तेरी बेरुखी ने तो इस दिल को,
तन्हा रहने को मजबूर कर दिया.


मेरे दिल में तेरी अथाह चाह थी,
क्यों तूने मुझे दिल से दूर कर दिया.


प्यार-भरे इस दिल पर,
तेरी नफरत की राख मली गई.


इस तरह से तो तू मेरे दिल में,
नफरत का चिराग जला के चली गई.


तेरे लाख कहने पर भी ,
अब ये दिल तेरे नाम नहीं करेंगे.


तू चाहे जितनी कौशिश करना मिलने की,
तुझे कभी सलाम नहीं करेंगे.


मेरे दिल से तेरी वो अदा,
नफरत बनकर चली गई.


इस तरह से तो तू मेरे दिल में ,
नफरत का चिराग जला के चली गई.


एक बेवफा से दिल लगाकर,
धोखे को प्यार समझ बैठे .


धोखे से भरी हुई दुनिया पर ,
बड़ी भूल से ऐतबार कर बैठे.


चलो अच्छा हुआ ,दिल तो टूटा मगर,
दुनिया का दस्तूर समझा के चली गई.,


इस तरह से तो तू मेरे दिल में ,
नफरत का चिराग जला के चली गई..



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