Thursday, 1 September 2011

69.तेरी चाहत आज मेरे दिल पर


तेरी चाहत आज मेरे दिल पर ,
नफरत  बनकर छा गई.


तुझे पाने के लिए हरदम बेचैन रहता था,
ना जाने मुझे तेरी कौन-सी अदा भा गई.


दिल में क्या-क्या अरमान थे,
सोचा था मिलकर बात करेंगे.


तू थी कि मुंह फेरकर,
मेरे आगे से चुपके से आ गई.


तेरी चाहत आज मेरे दिल पर,
नफरत बनकर छा गई.


पहले मैं सोचता था कि,
मेरी बातें सुनकर तेरी सोच बदल जाएगी,


मगर आज के तेरे नखरे को देखकर तो,
मैं खुद ही मना कर दूंगा,मिलने जो तू कल आएगी.


तेरी अदाओं को देखा तो ,
मुझे फिर से तन्हाई भा गई.


तेरी चाहत आज मेरे दिल पर ,
नफरत बनकर छा गई.


मेरे दिल की एक बार तो सुनी होती,
जिसने आवाज़ तुझे पल-पल दी.


मगर तू तो मेरे मोहब्बत के फूल को,
पैरों तले मसल कर चल दी.


दौलत की चाह में तू ना जाने क्यों,
मोहब्बत-भरे दिल को तोड़कर आ गई.


तेरी चाहत मेरे दिल पर,
नफरत बनकर छा गई.


तुझे पाने को हरपल बेचैन रहता था,
ना जाने मुझे तेरी कौन-सी अदा भा गई.


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