Thursday, 1 September 2011

65. जब जवानी ढल जाएगी


जब जवानी ढल जाएगी ,
तो क्या खाक शादी रचाओगे.


बच्चों के भविष्य कि चिंता में,
तुम अपना अस्तित्व भी मिटाओगे.


वो अमीरी किस काम की,
किसलिए दिन-रात काम में जुटता है.


दिन में एक पल का भी आराम नहीं,
सुबह उठता है तो बदन टूटता है.


जवानी में ही बूढ़े हो जाओगे,
तो आगे क्या खाक कमाओगे.


जब जवानी ढल जाएगी ,
तो क्या खाक शादी रचाओगे.


इतनी कमाई कम नहीं कि,
आराम से दाल-रोटी खा सको.


काम भी मनोरंजन के साथ करो,
ताकि शाम को खुशदिल घर आ सको.


जब काम में इतने टूट जाओगे,
क्या खुद खाओगे,क्या औरों को खिलाओगे.


जब जवानी ढल जाएगी,
तो खाक शादी रचाओगे.


अपनी-अपनी पसंद होती है,
अपना-अपना अलग अंदाज़ होता है.


सबको बताया नहीं जाता,
दिल में छुपा जो राज होता है.


मगर तन्हा कटती नहीं जिन्दगी,
किसी को तो अपना बनाओगे.


जब जवानी ढल जाएगी,
तो क्या खाक शादी रचाओगे..
 

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