Thursday, 1 September 2011

59. ना जाने कब वो रात होगी


ना जाने कब वो रात होगी ,
उनसे एक हँसीं मुलाक़ात होगी .


वैसे तो दिन के बाद रात होती है  ,
मगर उस रात की अलग ही बात होगी .


जब भी सोचने बैठते हैं ,ऐसा लगता है ,
वर्षों से कोई काम पड़ा है अधूरा,


उसके बिना तो हम भी अधूरे हैं ,
फिर कैसे होगा कोई काम पूरा .


उनका संग होगा,जीवन में एक नया रंग होगा ,
हरपल कोई ना कोई नई बात होगी  .


ना जाने कब वो रात होगी ,
उनसे एक हँसीं मुलाक़ात होगी .


ना होगा समय का बंधन ,
ना किसी का कोई भय होगा .


तन से सता हुआ तन होगा ,
मन भी मधुरमय होगा .


स्वर्ग -सा हर एक नज़ारा होगा ,
जब हमारी सुहागरात  होगी .


वैसे तो हर दिन के बाद रात होती है ,
मगर उस रात की अलग ही बात होगी .


ना बदन पे कोई पर्दा होगा ,
ना मन में कोई मैल होगी .


सब कुछ नया नज़र आएगा ,
एक नए जीवन की पहल होगी .


गुम हो जायेंगे सभी गम ,
खुशियों से भरी बरसात होगी .


ना जाने कब वो रात होगी ,
उनसे एक हँसीं मुलाक़ात होगी ...


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