रात को नींद नहीं आती ,
तेरा सपना कैसे लूं .
जमाना दुश्मन बन गया है अपना ,
तुझे अपना कैसे लूं.
की नज़रों में अब हमें ,
अलग-अलग ही रहना होगा.
सबसे नज़रें चुराकर न मिल पायें जिस दिन,
उस दिन दर्द-ए-तन्हाई भी सहना होगा .
सबको लगते हैं हम ऐसे ,
गर्मी में लगती हैं जैसे लू .
रात को नींद नहीं आती ,
तेरा सपना कैसे लूं .
हमें पास-पास देखकर ,
दुश्मन जमाना जलता है.
फिर भी हम मिल जाते हैं ,
किसी का कोई जोर नहीं चलता है .
दिल करता है हरपल मिलने को ,
मगर तुझे बाँहों में कैसे लूं .
रात को नींद नहीं आती ,
तेरा सपना कैसे लूं.
दुश्मन ज़माने से दूर कहीं ,
बसेरा अपना बसाना होगा .
जब भी मेरा दिल पुकारे तुझे ,
बिना कुछ सोचे आना होगा .
मेरी समझ में नहीं आता ,
पास तुझे अपने बुला कैसे लूं .
रात को नींद नहीं आती ,
तेरा सपना कैसे लूं.
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