Sunday 15 January 2012

201. याद तुम्हारी बहुत आये तो क्या करें



याद तुम्हारी बहुत आये तो क्या  करें ,
तुम्हारा ख्याल दिल से न जाये तो क्या करें ,


सोचा था तुमसे सपनों में मुलाक़ात होगी ,
मगर कमबख्त नींद ही न आये तो क्या करें .


तुम्हारी जुदाई में नैन बरस जाएँ तो क्या करें ,
तुम्हे एक पल देखने को तरस जाएँ तो क्या करें 


प्यास नहीं बुझती देखकर तस्वीर को ,
मेरी तकदीर ही पलट जाये तो क्या करें .


मरना भी चाहें तेरी जुदाई में  मगर ,
साँस बीच में ही अटक जाएँ तो क्या करें .


कैद कर लिया खुद को तेरे दिल के कैदखाने में ,
बाहर निकलने में शर्म आये तो क्या करें .


चुपके से  मर जायेंगे तेरे दिल के एक कोने में ,
अब तू ही ना सम्भाल पाए तो क्या करें .


मिलना भी चाहें  तो किस तरह ,
ये फासले ही ना मिट पायें   तो क्या करें .

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