Friday 6 January 2012

196. मै जब भी कोई गजल लिखूं


मै जब भी कोई गजल लिखूं 
तुम मेरे ख्याबो में आ जाया करो I

जब भी देखो मेरे हाथ में कलम ,
पकड़ के हाथ मेरा एक नई गजल लिख जाया करो I

तेरी  याद में जब भी लिखूं कविता कोई नई,
तेरे संग बिताई यादों का रंग इसमें भर जाया करो I

रात के पहले पहर में एक नए शहर में ,
मेरी तन्हाई को दूर कर जाया करो I

मै जब भी कोई गजल लिखूं .
तुम मेरे ख्वाबों में आ जाया करो I

जब सावन की ठंडी -ठंडी बयार हो ,
गर थोड़ा - सा भी मुझसे प्यार हो I

मै कांपने ना लग जाऊं  ठण्ड से ,
मेरी बाँहों में समा  जाया करो I

तेरी जुदाई में रोता हूँ रात-रात भर ,
तुम आंसूं मेरे पोंछ जाया करो I


मै जब भी कोई गजल लिखूं  ,
तुम मेरे ख्वाबों में आ जाया करो I  

 तन्हा देखकर मेरे कानो में  प्यार भरी ,
अपनी मोहब्बत की दास्ताँ ब्यान कर जाया करो I

तेरे जाने के गम में मेरी जान जब जाने लगे ,
मेरे लबों से लब सटाकर सांस नई भर जाया करो I

मरकर भी ना मरे  मोहब्बत अपनी ,
हर युग में मेरी महबूबा बनकर आ जाया करो I  

मै जब भी कोई गजल लिखूं ,
तुम मेरे ख्वाबों में आ जाया करो I  I

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