जान दे न बाहर
हो री स वार पड़े ना पार
बतलावन की ।
आजा ना यार कर ले बात दो चार
के तावल स जावन की ।
काटना स न्यार भूखी है भैंस बाहर
जाना पड़ेगा यार
टेम ना ठेग लावण की
इब पड़े ना घाम रोज बरस स राम
लाग री झड़ी सावन की ।
खुले चरन दे ढोर क्यों भरे स खोर
के कमी स खुले मे हरा खावन की ।
एक तो हो री स वार कर लूँ थोड़ा श्रृंगार
इब तावल स जावन की ।
घणी ए सुथरी स गौरी, ले री रूप की तु बोरी
के जरूरत स तने नहावन की ।।
सारी बाता न जाणू सू।
तेरी नीत न पिछाणु सू।
के जरूरत स तने समझवाण की।।
ना दिल पर मारे तू चोट,
मेरे मन म ना स कोई खोट।
ना सोचे था दिल लावण की।।
के धरा स इन बाता म
झूठे रिस्ते नाता म।
ना करे कोशिश नजर मिलावण की।।
कर ले नीत कमा क खावन की।।
No comments:
Post a Comment